नई दिल्ली । पिछले काफी समय से देश की जनता पेट्रोल-डीजल के जीएसटी के तहत आने की उम्मीद पाले बैठी थी, ताकि देश में आसमान की ओर कदम बढ़ाते पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में कटौती हो सके, लेकिन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने लोगों की उम्मीदों पर मंगलवार को पानी फेर दिया। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने बताया कि राज्य पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए तैयार नहीं हैं। राज्यों का फिलहाल जो मन है, वह यह है कि वे पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में नहीं लाना चाहते। हालांकि इससे पूर्व खबरें ये थी कि कई राज्यों ने पेट्रोल की दरों को जीएसटी के दायरे में लाने पर अपनी सहमति जता दी है। बहरहाल, वित्तमंत्री के इस खुलासे ने लोगों की उम्मीदों को बड़ा झटका दिया है।
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बता दें कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में आ रही लगातार बढ़ोतरी की वजह से देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें भी बढ़ती जा रही हैं। पेट्रोल और डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों से जनता को राहत मिलती नहीं दिख रही है। बजट में निराशा हाथ लगने के बाद जीएसटी परिषद से उम्मीद लगाई जा रही थी वह पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाकर लोगों को बड़ी राहत देगी। लेकिन वित्तमंत्री के खुलासे ने इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।
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हालांकि उन्होंने उम्मीद जताई कि प्राकृतिक गैस, रियल इस्टेट पहले जीएसटी के दायरे में लाए जा सकते हैं। अभी नहीं लेकिन बाद में पेट्रोल और डीजल का भी नंबर आ सकता है। जेटली ने कहा कि फिलहाल तो नहीं लेकिन बाद में हम पेट्रोल, डीजल, पीने योग्य अल्कोहल को भी जीएसटी के दायरे में लाने के लिए प्रयास करेंगे।
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सूत्रों का कहना है कि अगर पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाता है, तो इससे देश में विभिन्न सेल्स टैक्स के बजाए एक ही टैक्स हो जाएगा। इससे भले ही महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों में थोड़ी राहत मिलेगी, लेकिन कम वैट वसूलने वाले राज्यों में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बहुत बड़े स्तर पर बढ़ोतरी हो जाएगी. ऐसे में कोई राजनीतिक पार्टी नहीं चाहेगी कि वह ऐसा कोई कदम उठाए।
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